Saturday, December 4, 2010

मस्ती

तुझसे मुलाकात के बाद ये मेरा हाल है
या फिर इस हाल में तुझसे मुलाकात हो गई
संगीत के तार बजते हैं हर पल कहीं
जैसे अमृत बरस रहा हो हर तरफ से

इतनी मस्ती छाई है कि पता नहीं क्या करूँ
सब कुछ जैसे नया जन्म ले रहा हो
आँखों में एक नई रोशनी है
हवा में कहाँ से इतनी खुशबू आ गई है

मन कहता है
बाँध के घुँघरू बस नाचती रहूँ
सारे गली-मुहल्ले में शोर मचाऊँ
अंग अंग में रंग भर गया प्रेम का
इस प्रेम को लेकर अब जाऊँ कहाँ

होंठों पर बिखरी रहती है हंसी
सब पूछते है मुझसे इस मस्ती का राज़
क्या मिल गया है तुझे?
जो खिली है रात में सुबहे की पहली किरण जैसी

थक नहीं जाती नाचते-नाचते
क्या कहूँ मैं उनसे
ऐसा रंग चढ़ा है उतरने का नाम ही नहीं लेता
-- Wed, २० जून २००७

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