Thursday, December 9, 2010

मेरे साथी

मेरे साथी ,
मैं तुझसे शिकायत नहीं कर रही हूँ
यूहीं कभी-कबार आँख भर आती है

तेरी आवाज सुनने के लिए कान तरस गए हैं
देखने के लिए आँखें बिछी हुई है
तुझसे मिलने के लिए हर सांस तड़पती है

जब होती हूँ अकेली अपने कमरे में
तेरी ही तस्वीर दिखाई देती है
कैसे थे वो दिन जो तेरे साथ बिताए
उन्हें फिर से जीने की तमन्ना जागती है

पर मेरे साथी ,
मैं तुझसे शिकायत नहीं कर रही हूँ
यूहीं कभी-कबार आँख भर आती है

उस रास्ते पर जहाँ ,
मैं बच्चों की तरहे तुझसे जिद्द करती थी
कदम आगे ही नहीं बढ़ पाते
लगता है जैसे तू वहीँ कहीं होगा ,
और मुझे थाम लेगा

मैं जानती हूँ,
ये अधूरापन मेरा भी है और तेरा भी
तू मेरा जैसा बन गया और मैं तेरे जैसी
एक होकर भी दो टुकड़े हो गए
जो कभी ना जुड सके इतने अलग हो गए
इतने पास होकर भी ,
बताओ ना
हम कैसे इतने दूर हो गए?

जो भी हो साथी मेरे ,
तू भूलकर भी ये मत सोचना
मैं ताने मार रही हूँ
पर यूहीं कभी-कबार आँख भर आती है

कितनी अधूरी कहानी लेकर जिंदा रहता है इंसान
हमारी भी कहानी अधूरी ही रह गई
वादों की अनोखी दास्तान होती है ,
जब करते हैं बस उसी पल में वे सच होते हैं
समय के संग ,
मैं भी बहती चली गई
और तू भी
ना वादे वहीँ रहते हैं ना मैं और तू

बाहर तो फूल थे खुशबू थी,
अन्दर कांटे कहाँ से निकल आये
शायद कांटे वहां हमेशा से थे,
मैंने तूने पहले कभी टटोले नहीं थे
जैसे ही कांटे चुभे हम अलग हो गए
अपने अपने रास्तों के राही हो गए

मेरे साथी,
तू ये तो नहीं सोच रहा
मैं तुझे दोष दे रही हूँ
नहीं रे
यूहीं कभी-कबार आँख भर आती है

तूने मैंने मिलकर ही सब तोड़ा
जैसे हों कांच के बर्तन
फिर क्यों आंसू आये
फिर क्यों दिल पुकारे
ना तू समझा मुझे
ना मैं देख पाई तुझे आँख भरकर
एक झोका आया
और सब बिखर गया
एक कतरा भी ना बाकी रहा

मेरे साथी ,
कुछ तो जवाब दे ,
जब तुझसे मिली थी तो लागा था ,
जैसे बरसों के इंतज़ार के बाद ,
बंजर में बूंदे पड़ी हों
फिर कैसे तू बदल गया ?
कैसे मैं बदल गई ?

जाने कब कैसे छोटी छोटी वजह,
तुझसे मुझसे बड़ी हो गई
ऐसे जुदा हो गए
जैसे कोई रिश्ता नाता न हो

लेकिन एक बात बताओ साथी
दूर तो हम गए ,
पर तू थोडा सा मुझमें आ गया
मैं थोड़ी सी तुझमें चली गई

अब साथ रहें या ना रहें
एक दुसरे के साथी रहेंगे !

No comments:

Post a Comment