Thursday, June 30, 2011

मन मेरे ...

मन मेरे ...
क्यों है तू बाबरा ,
जो मिलता है वो तुझे नहीं भाता
जो नहीं मिलता,
उसे पाना मकसद जो जाता तेरा !

ये भी कोई बात है भला,
तू रहे हमेशा सब पाकर भी प्यासा !
करू कितने भी जतन ,
तेरा प्याला खाली ही रह जाता !

हद है दोस्त तेरी,
नींद में भी तू भटकता रहता है
सपनों में,
कभी अतीत को कुरेदता है
कभी भविष्य के सपने बुनता है

क्या करू तेरा , तू ही बता दे !
न दोस्ती भली तुझसे,
न दुश्मनी से कुछ हासिल !
कोई बीच का मार्ग हो, तो समझा दे !

सच ये है ,
तू मुझसे, मैं तुझसे जुदा हो नहीं सकते!
तो ऐसा करते हैं ,
ज़रा-सा फासला दरमियां बना लेते हैं

मैं दूर से तुझे निहारती रहूँ !
न तेरी कुछ सुनु, न अपनी कुछ कहू ,

बता बाबरे मन कैसी रहेगी !

2 comments:

  1. another good one !!
    and dis is so true!
    जो मिलता है वो तुझे नहीं भरता
    जो नहीं मिलता,
    उसे पाना मकसद जो जाता तेरा !

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  2. सब मन का ही खेल है :-)
    Love..

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