Monday, September 12, 2011

महबूब मेरे

तू खुदा बन गया है मेरा
तुझे मुहब्बत करना मज़हब मेरा

तेरी आँखों में अपनी तस्वीर झाँक कर जागूँ
तेरी बाँहों में लिपट कर हर रात गुजारूं

ज़हर भी दे दे कोई तेरा नाम लेके
मुस्कुराके होठों से उसे चूम लूँ

तूने पूरा कर दिया है मुझे
अपना हमसफ़र बनाके
अब आ जाए मौत भी
तो मैं कोई सिकवा न करूँ

कहने दो करने दो ज़माने की जो मर्जी हो
लगाने दो बदनामी के दाग भी जो लगाने हो
मैं उफ़ तक न करूँ

गिरा दूं हर पर्दा
मिटा दूं हर दूरी

लुटा दूं अपनी हस्ती
करूँ हदें पार सारी
करूँ हदें पार सारी तेरी बंदगी में महबूब मेरे

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना , सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई



    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें .

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  2. खुबसूरत अहसासों को लफ़्ज दे दिए बहुत खूब ...
    .आपके ब्लॉग पर शायद पहली बार आया .

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